Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Ek Desh, Barah Duniya’ by Shirish Khare

‘Rajasthan Patrika’ and ‘Tehelka’ journalist Shirish Khare brings stories of despair and home from Indian hinterlands.

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शिरीष खरे की किताब एक देश, बारह दुनिया का एक अंश, राजपाल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

‘‘तुम भटकते यहां पहुंचे हो तो लौटने के लिए तुम्हारे दिमाग में कोई घर घूम रहा है! हमारे दिमाग में कोई घर नहीं घूमा करता था।’’ समझ नहीं आया कि यह बात कहते हुए भूरा गायकवाड़ ने मुझसे पूछा था, या फिर वे अपनी धुन में थे।

सर्द हवा और दुर्गम पगडंडियों से होकर मैं एक मोहल्ले पहुंचा था, जिसकी मुझे मुंबई से तलाश थी, जिसे न तो कभी देखा था और जिसके बारे में न ही पहले कभी सुना था। वहां जगह का नाम बताने वाला कोई बोर्ड तो लगा नहीं था, फिर भी एक घुमावदार मोड़ के बाद सतीश ने गाड़ी रोककर ज्यों ही कहा, ‘उतरो’ तो बस्ती देखकर ही समझ गया। और समय के दस-बारह साल आगे तक वहां बिताएं कई घंटे कई दिन बन मेरी स्मृतियों के जमघट में ठहरे हुए हैं, एक कहानी की तरह...

...और फिर पलक झपकते ही लगा गिरे धड़ाम से!

नहीं, हम नहीं हमसे कुछ कदम आगे एक गड्ढे के पास साइकिल पर सवार दो बच्चे औंधे मुंह गिरे। यह देख सतीश ने तुरंत पूरी ताकत से ब्रेक पर पैर दबा दिया। एक जोरदार झटके के बाद मोटर-साइकिल रुकी। मैं उतरकर तब तक उन बच्चों के...

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