Hindi travelogue: An excerpt from ‘Weh Bhi Koi Desh Hai Maharaj’ by Anil Yadav

This book weaves history, politics, myth and gritty ground-zero reportage into an unforgettable portrait of North-East India.

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अनिल यादव की किताब वह भी कोई देस है महराज का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

मणिपुर का वैष्णव जबरन विलय और दिल्ली की हेकड़ी की प्रतिक्रिया में जीता है। यहाँ के महाराजा ने 11 अगस्त 1947 को भारत का हिस्सा होने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उसी साल मणिपुर के अपने संविधान के तहत विधानसभा चुनाव हुए थे। पहली सरकार भारत में पूर्ण विलय के विरोधियों के गठबंधन प्रजा शांति सभा की महाराज कुमार प्रियव्रत सिंह के नेतृत्व में बनी थी। राजकुमार समेत मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्यों का झुकाव वामपंथी था। वह चीन, बर्मा और पूर्वी भारत में कम्युनिस्ट उभार का जमाना भी था, मणिपुर हाथ से निकल सकता था। भारत सरकार ने मणिपुर कांग्रेस (जिसे पहले चुनाव में 24 सीटें मिली थीं) के ज़रिए दबाव बनाकर महाराजा से शिलांग में 21 सितंबर 1949 को पूर्ण विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करा लिए और राज्य सरकार बर्खास्त कर दी गई। कहा जाता है महाराजा को नज़रबंद किया गया था। उनकी विधानसभा से विलय का प्रस्ताव पास कराने और जनमत संग्रह कराने की माँग ठुकरा दी गई थी। महाराजा के बहनोई और कृषक सभा के नेता इराबोत सिंह ने बर्मा जाकर स्वाधीन, समाजवादी मणिपुर के लक्ष्य के लिए कबौ घाटी में मणिपुर...

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