Hindi poetry: An excerpt from 2024 Sahitya Akademi winner Gagan Gill’s ‘Main Jab Tak Aayi Bahar’
‘मैं जब तक आई बाहर / ख़ाली हो चुके थे हमारे हाथ’
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गगन गिल के मैं जब तक आई बाहर का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
एक पल में होना था
अचानक ख़त्म हो गए सब काम
रुकी रह गई
हवा में साँस
न कहीं जाने को जगह
न पहुँचने को
न बची चिन्ता
न कोई
प्रार्थना
पहले अन्न हुआ अस्वीकार
फिर फल
दूध सब
कम हुए घंटे
घट और पल
लँगड़ी हुई घड़ी
फिर लूली
काला हुआ चाँद
खिड़की के बाहर
वनस्पतियाँ काली
दिन काला
डोर काट अकेली
उड़ीं तुम गगन में
डूबी एक किश्ती
गड़गड़ सीने में
उजली तुम्हारी साँस
आख़िर तक
दलदल में
होंठों पर आख़िर तक
नाम प्रार्थना का
आकाश से
बरसा एक कोड़ा
मैं डरी
हम डरे
जा दुबके भीतर
तुम्हारे मृत गर्भ में
एक पल में होना था
एक पल में हुआ
अन्य यह संसार
हमारे लिए नहीं होगा जल
हमारे लिए नहीं होगा
जल
दूसरे लोकों में
हम नहीं होंगे
किसी भी प्रार्थना में
हमारे लिए नहीं होगा
लौटने का
कोई रास्ता
कोई नहीं दिखाएगा हमें
अपना दिया
एक बार की उड़ान बस
और जल जाएँगे
पंख सब
एक बार का चलना बस
और जल जाएँगे
पुल सब
आकाश में फूटतीं
पटाखों की लड़ियाँ
एक कोई नदी
तकती होगी
हमारी राह
उसमें भी नहीं होगा
हमारे लिए
जल
तितली ने कहा
तितली ने कहा
कुल नौ दिन
मैं तुम्हारे पास हूँ
बगीचा यूँ ही रखना
तीसरे दिन
झर जाने वाला था गुलाब
गुड़हल
उसी दिन शाम को
हरसिंगार के पास थे
कुल जमा एक घंटा तीन मिनट
कुछ भी नहीं
रहने वाला था थिर
न ओस, न जल
न आँख, न आँसू
कुल नौ दिन का जीवन उसका
उड़ती फिरती थी वह
जहान भर में
कह गई थी मुझसे
बगीचा यूँ ही रखना
मैं जब तक आई बाहर
मैं जब तक आई बाहर
एकान्त से अपने
बदल चुका था
रंग दुनिया का
अर्थ भाषा का
मंत्र और जप का
ध्यान और प्रार्थना का
कोई बन्द कर गया था
बाहर से
देवताओं की कोठरियाँ
अब वे खुलने में न आती थीं
ताले पड़े थे तमाम शहर के
दिलों पर
होंठों पर
आँखें ढक चुकी थीं
नामालूम झिल्लियों से
सुझाई कुछ पड़ता न था
मैं जब तक आई बाहर
एकान्त से अपने
रंग हो चुका था लाल
आसमान का
यह कोई युद्ध का मैदान था
चले जा रही थी
जिसमें मैं
लाल रोशनी में
शाम में
मैं इतनी देर में आई बाहर
कि योद्धा हो चुके थे
लड़ते-लड़ते
अदृश्य
शहीद
युद्ध भी हो चुका था
अदृश्य
हालाँकि
लड़ा जा रहा था
अब भी
सब ओर
कहाँ पड़ रहा था
मेरा पैर
चीख़ आती थी
किधर से
पता कुछ चलता न था
मैं जब तक आई बाहर
ख़ाली हो चुके थे हमारे हाथ
न कहीं पट्टी
न मरहम
सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था
वही अब तक याद था
किसी ने मुझे
वह दिया न था
मैंने ख़ुद ही
खोज निकाला था उसे
एक दिन
अपने कंठ...