Hindi historical fiction: An excerpt from ‘Khanzaada’ by Bhagwandass Morwal

A novel featuring the Tughlaq, Sadat, Lodhi, and Mughal emperors of the 14th century.

Hindi historical fiction: An excerpt from ‘Khanzaada’ by Bhagwandass Morwal

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भगवानदास मोरवाल के उपन्यास तुग़लक़, सादात, लोदी और मुग़ल राजवंशों से लोहा लेनेवाले मेवातियों की गाथा ख़ानज़ादा का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

बाबर ने सारी बग़ावतों को कुचलने के बाद देहली और आगरा ही नहीं, बल्कि दूसरे परगनों व इलाक़ों में अपने हाकिम और शिक़दार (गवर्नर) तैनात कर दिए।

ईद-उल-फ़ित्र के कुछ दिन बाद बादलगढ़ क़िले में गुम्बददार बारादरी महल के बीच में बने ऐवान (दालान) में बाबर ने बहुत बड़े दरबार का आयोजन किया। बड़े-बड़े ख़ूबसूरत पत्थरों के स्तंभोंवाला यह वही महल है, जहाँ कभी सुल्तान सिकंदर लोदी और इब्राहिम लोदी का दरबार लगता था। जिसमें इब्राहीम की माँ सुल्ताना बैदा पूरे राजसी ठाठ के साथ रहती थी l मगर नियति का खेल देखिए कि उसी बैदा को आज इस महल में क़ैदी बन कर रहना पड़ रहा है।

पानीपत की जंग जीतने के बाद बाबर का यह पहला दरबार है। इस दरबार में उन अमीर-उमरा और बेगों को सम्मानित किया जाना है, जिन्होंने इस मुहिम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दीवाने-ख़ास में सबसे पहले हुमायूँ को बुलाया गया। बाबर ने हुमायूँ को वह कोहनूर हीरा वापिस कर दिया, जो हुमायूँ को आगरा में सुल्तान इब्राहिम लोदी की हार के बाद ग्वालियर के महाराजा विक्रमादित्य ने दिया था।

हुमायूँ को हीरा करते समय बाबर की पुरानी स्मृति ताज़ा...

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