Hindi fiction: An excerpt from ‘Trimaya’, by Manisha Kulshreshtha

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मनीषा कुलश्रेष्ठ के उपन्यास त्रिमाया का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
“ये नूपुर! ओह! पुरुषों को इसकी कामुक झंकार सम्मोहित कर देती है। इसे धारण करने वाली को धीरे-से चलना होता है। तुम जानती हो न! प्रदर्शन का समय हो गया और मुझे तैयार होने में दो घण्टे लगेंगे। हमेशा याद रखना एक नर्तकी को एकदम स्वच्छ और बेदाग वस्त्र पहनने होते हैं। न केवल पोशाक आकर्षक होनी चाहिए, बल्कि उसे ठीक से पहना भी जाना चाहिए। नौ फ़ीट लम्बा ओन्नारा, एक अन्त:वस्त्रम जिसे हम नायर महिलाएँ हमेशा पहनती हैं, सबसे पहले उसे ही कसकर बाँधना होगा नहीं तो मैं चेला पहनने के बाद बहुत ही मोटी लगूँगी।
आह! यह लम्बी सज्जा मुझे थकाती है मगर आँखों में कनमाशी (कज्जल-रेख), थोड़ा-सा सिन्दूर और थोड़ा-सा चावल का महीन आटा चेहरे पर लगाना होगा। मैं गोरी हूँ, इसलिए बहुत कम लगाती हूँ। हालाँकि तारा ऐसा करती है, वह अरिपोडी लेप में अधिक पीला और कम लाल रंग मिलाती है, ताकि उसकी रंगत धुँधले-सलेटी मंच से ठीक से उभर सके। मगर उसकी कर्णचुम्बी आँखें दूर से बुलाती हैं। इसके बाद मुझे अपनी अंगुलियों में अँगूठियाँ और अपनी ऊपरी बाँह पर साँप के आकार के बाजूबन्द पहनने होंगे। अपने बालों को मुलायम बनाने के लिए थोड़ा सा नारियल...
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