Hindi fiction: An excerpt from ‘Tanashah Ki Premkatha’ by Gyan Chaturvedi

Love does not spare anyone – be it young lovers, husbands and wives, and most importantly, a ruler and the country.

Hindi fiction: An excerpt from ‘Tanashah Ki Premkatha’ by Gyan Chaturvedi

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ज्ञान चतुर्वेदी की उपन्यास एक तानाशाह की प्रेमकथा का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

बादशाह प्रेम से डरता है। उसकी तानाशाही के प्राण हैं नफ़रत। विभिन्न सम्प्रदायों, जातियों, गुटों के बीच नफ़रत सुलगती रहे तभी तानाशाही की मटकी बढ़िया पकती है। पर होता ये है कि प्रेम अचानक ही आता है और ये हँडिया फोड़कर गायब हो जाता है। नफ़रत तरह-तरह से कोशिश करती है, सन्त, महात्मा, फ़क़ीर, धर्मोपदेशक का वेश धर के भी देख चुकी परन्तु प्रेम उसे हर बार से हरा देता है। बादशाह जानता है कि देश में व्याप्त प्रेमभाव से उसकी तानाशाही को हमेशा खतरा रहेगा।

प्रेम को नेस्तनाबूद करना होगा। पर कैसे?

तब बादशाह को इस पाँचवें तानाशाह का पता चला, प्रेम का तानाशाह। यही हर प्रेमकथा लिखा करता है। बताया गया कि प्रेम की तानाशाही तो इस देश में सदियों से जारी है। जितना पता चलता गया, हैरान होता गया बादशाह। उसे प्रेम के बारे में बहुत सी बातें पता चलीं कि जन-जन पर निर्बाध सत्ता है प्रेम की; लोग वे-मोल बिक जाते हैं प्रेम में। प्रेम से बड़ा कोई तानाशाह नहीं; न वो, न कोई और; कहते हैं कि न ऐसा कोई हुआ है, न होगा; पचासों तानाशाह दुनिया में आए, गए; क्रिस्से बने, विसर गए, विस्मृति और इतिहास में...

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