Navratri Pushp: देवी को प्रसन्न करना है तो जरूर चढ़ाएं ये फूल, यहां जानें सभी स्वरूपों के प्रिय रंग और फूल

कब तक है नवरात्रि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से हुई है, यह मां दुर्गा पूजा का उत्सव 17 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान मां के नौ स्वरूपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इन स्वरूपों के अलग-अलग भोग, रंग और पुष्प हैं। किसी को चमेली प्रिय है तो किसी को रात रानी। आइये जानते हैं किस माता को कौन सा फूल प्रिय है... मां शैलपुत्री पूजा देवी सती के रूप में आत्मदाह करने के बाद देवी पार्वती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है, इसीलिए देवी को पर्वत की पुत्री शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। मान्यता के अनुसार सौभाग्य प्रदान करने वाले चंद्रमा ग्रह देवी शैलपुत्री द्वारा शासित हैं। आदि शक्ति के इस शैलपुत्री रूप की पूजा करने से चन्द्र ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से रक्षा होती है। इनका प्रिय पुष्प चमेली है। मां ब्रह्मचारिणी देवी कूष्माण्डा का स्वरूप धारण करने के बाद देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस रूप में देवी पार्वती एक महान सती थीं और उनके अविवाहित रूप को देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी हैं। इन्हीं मां की पूजा नवरात्रि उत्सव के दूसरे दिन होती है। मान्यता के अनुसार सौभाग्य दाता मंगल देवी ब्रह्मचारिणी द्वारा शासित हैं। इनका प्रिय पुष्प भी चमेली है। ये भी पढ़ेंः Navratri Bhog: सभी नौ स्वरूपों को प्रिय हैं ये भोग, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए रोज चढ़ाएं अलग भोगमां चंद्रघंटा देवी चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा। नवरात्रि उत्सव के तीसरे दिन मां पार्वती के इसी तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस स्वरूप का ग्रह शुक्र है। इनका प्रिय पुष्प चमेली है। मां कूष्मांडा मां सिद्धिदात्री का रूप धारण करने के बाद देवी पार्वती सूर्य के केंद्र के भीतर निवास करने लगीं ताकि वह ब्रह्माण्ड को ऊर्जा प्रदान कर सकें। उसी समय से देवी को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। कूष्माण्डा वह देवी हैं, जिनमें सूर्य के अन्दर निवास करने की शक्ति और क्षमता है। देवी कूष्माण्डा की देह की तेज और कान्ति सूर्य के समान दैदीप्यमान है। नवरात्रि पूजा के चौथे दिन इसी देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः भगवान सूर्य देवी कूष्माण्डा द्वारा शासित होते हैं। इनका प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं। मां स्कंदमाता जब देवी पार्वती भगवान स्कंद (जिन्हें भगवान कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है) की मां बनीं तो वह देवी स्कंदमाता के नाम से लोकप्रिय हो गईं। नवरात्रि पूजा उत्सव के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार बुध ग्रह पर देवी स्कंदमाता का शासन है। इनका प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं। मां कात्यायनी राक्षस महिषासुर का संहार करने वाली देवी पार्वती ने देवी कात्यायनी का रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सबसे उग्र रूप था। देवी पार्वती के कात्यायनी स्वरूप को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि उत्सव के छठवें दिन देवी कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी का बृहस्पति ग्रह पर शासन है। इस देवी का प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं, विशेषतः गुलाब के पुष्प प्रिय हैं। ये भी पढ़ेंः Durga Puja Vidhi: मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नवरात्रि में इस विधि से करें पूजा, पढ़ें-मंत्र और ऐसे करें स्तुतिमां कालरात्रि जब देवी पार्वती ने शुम्भ और निशुम्भ नाम के राक्षसों का वध करने के लिए अपनी बाहरी स्वर्णिम त्वचा को हटा दिया तो उन्हें देवी कालरात्रि के नाम से जाना गया। कालरात्रि देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र और वीभत्स रूप है। नवरात्रि उत्सव के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा-आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी कालरात्रि का शनि ग्रह पर शासन है। मां काली का प्रिय फूल रात की रानी है। मां महागौरी हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी शैलपुत्री सोलह वर्ष की आयु में अत्यंत रूपवती थीं और उन्हें गौर वर्ण का आशीर्वाद प्राप्त था। उनके अत्यधिक गौर वर्ण के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता था। नवरात्रि उत्सव के आठवें दिन देवी इन्हीं महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार राहु ग्रह पर देवी महागौरी का शासन है। मां महागौरी का प्रिय पुष्प रात की रानी है। मां सिद्धिदात्री धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्माण्ड के आरम्भ में भगवान रुद्र ने सृजन के लिए आदि पराशक्ति की पूजा की। मान्यताओं के अनुसार, देवी आदि-पराशक्ति का कोई रूप नहीं था अर्थात वह निराकार रूप में थीं। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाए अर्ध भाग से माता सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं थीं। नवरात्रि के नौवें दिन इन्हीं देवी सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः केतु ग्रह पर देवी सिद्धिदात्री का शासन है। इनका प्रिय पुष्प रात की रानी है।

Navratri Pushp: देवी को प्रसन्न करना है तो जरूर चढ़ाएं ये फूल, यहां जानें सभी स्वरूपों के प्रिय रंग और फूल

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कब तक है नवरात्रि


चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से हुई है, यह मां दुर्गा पूजा का उत्सव 17 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान मां के नौ स्वरूपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। इन स्वरूपों के अलग-अलग भोग, रंग और पुष्प हैं। किसी को चमेली प्रिय है तो किसी को रात रानी। आइये जानते हैं किस माता को कौन सा फूल प्रिय है...

मां शैलपुत्री पूजा


देवी सती के रूप में आत्मदाह करने के बाद देवी पार्वती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है, इसीलिए देवी को पर्वत की पुत्री शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। मान्यता के अनुसार सौभाग्य प्रदान करने वाले चंद्रमा ग्रह देवी शैलपुत्री द्वारा शासित हैं। आदि शक्ति के इस शैलपुत्री रूप की पूजा करने से चन्द्र ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से रक्षा होती है। इनका प्रिय पुष्प चमेली है।

मां ब्रह्मचारिणी


देवी कूष्माण्डा का स्वरूप धारण करने के बाद देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस रूप में देवी पार्वती एक महान सती थीं और उनके अविवाहित रूप को देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी हैं। इन्हीं मां की पूजा नवरात्रि उत्सव के दूसरे दिन होती है। मान्यता के अनुसार सौभाग्य दाता मंगल देवी ब्रह्मचारिणी द्वारा शासित हैं। इनका प्रिय पुष्प भी चमेली है।

ये भी पढ़ेंः Navratri Bhog: सभी नौ स्वरूपों को प्रिय हैं ये भोग, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए रोज चढ़ाएं अलग भोग

मां चंद्रघंटा


देवी चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। भगवान शिव से विवाह करने के बाद देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा। नवरात्रि उत्सव के तीसरे दिन मां पार्वती के इसी तीसरे स्वरूप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस स्वरूप का ग्रह शुक्र है। इनका प्रिय पुष्प चमेली है।

मां कूष्मांडा


मां सिद्धिदात्री का रूप धारण करने के बाद देवी पार्वती सूर्य के केंद्र के भीतर निवास करने लगीं ताकि वह ब्रह्माण्ड को ऊर्जा प्रदान कर सकें। उसी समय से देवी को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। कूष्माण्डा वह देवी हैं, जिनमें सूर्य के अन्दर निवास करने की शक्ति और क्षमता है। देवी कूष्माण्डा की देह की तेज और कान्ति सूर्य के समान दैदीप्यमान है। नवरात्रि पूजा के चौथे दिन इसी देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः भगवान सूर्य देवी कूष्माण्डा द्वारा शासित होते हैं। इनका प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं।

मां स्कंदमाता


जब देवी पार्वती भगवान स्कंद (जिन्हें भगवान कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है) की मां बनीं तो वह देवी स्कंदमाता के नाम से लोकप्रिय हो गईं। नवरात्रि पूजा उत्सव के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यताओं के अनुसार बुध ग्रह पर देवी स्कंदमाता का शासन है। इनका प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं।

मां कात्यायनी


राक्षस महिषासुर का संहार करने वाली देवी पार्वती ने देवी कात्यायनी का रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सबसे उग्र रूप था। देवी पार्वती के कात्यायनी स्वरूप को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि उत्सव के छठवें दिन देवी कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी का बृहस्पति ग्रह पर शासन है। इस देवी का प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल हैं, विशेषतः गुलाब के पुष्प प्रिय हैं।

ये भी पढ़ेंः Durga Puja Vidhi: मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नवरात्रि में इस विधि से करें पूजा, पढ़ें-मंत्र और ऐसे करें स्तुति

मां कालरात्रि


जब देवी पार्वती ने शुम्भ और निशुम्भ नाम के राक्षसों का वध करने के लिए अपनी बाहरी स्वर्णिम त्वचा को हटा दिया तो उन्हें देवी कालरात्रि के नाम से जाना गया। कालरात्रि देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र और वीभत्स रूप है। नवरात्रि उत्सव के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा-आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी कालरात्रि का शनि ग्रह पर शासन है। मां काली का प्रिय फूल रात की रानी है।

मां महागौरी


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी शैलपुत्री सोलह वर्ष की आयु में अत्यंत रूपवती थीं और उन्हें गौर वर्ण का आशीर्वाद प्राप्त था। उनके अत्यधिक गौर वर्ण के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता था। नवरात्रि उत्सव के आठवें दिन देवी इन्हीं महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार राहु ग्रह पर देवी महागौरी का शासन है। मां महागौरी का प्रिय पुष्प रात की रानी है।

मां सिद्धिदात्री


धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्माण्ड के आरम्भ में भगवान रुद्र ने सृजन के लिए आदि पराशक्ति की पूजा की। मान्यताओं के अनुसार, देवी आदि-पराशक्ति का कोई रूप नहीं था अर्थात वह निराकार रूप में थीं। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाए अर्ध भाग से माता सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं थीं। नवरात्रि के नौवें दिन इन्हीं देवी सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः केतु ग्रह पर देवी सिद्धिदात्री का शासन है। इनका प्रिय पुष्प रात की रानी है।