Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Patna: Bhoole Huye Kisse,’ by Arun Singh

How to see the city of Patna through a socio-cultural lens.

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अरुण सिंह के किताब पटना : भूले हुए क़िस्से का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

‘मेरे बचपन में रोजाना शाम के वक़्त एक लहकती हुई तान दूर फिज़ा में बुलंद होती। मैं तो खैर कमसिन था मगर दूसरे लोग चौंक उठते। आवाज करीब आती जाती और साथ ही साथ यह महसूस होने लगता कि सारी फिज़ा उसकी दिलकश तान से मस्त होती जा रही है। कुछ देर के बाद एक अधेड़ उम्र की औरत नीमवार फ़तगी में आहिस्ता-आहिस्ता कश्मीरी कोठी की तरफ से मेरे मुहल्ले यानी सदर गली के जानिब चलती हुई नजर आती। दस कदम चलती और रुक जाती। रुक जाती तो फिर ऐसी पाटदार आवाज आती जो सुनने वाले को मस्त कर दे फिर अपना राग छेड़ती। दुकानदार अपना काम छोड़ देते और राहगीर रुक कर उसका गाना सुनने लगते। यूं ही गाती हुई वह मेरे मोहल्ले से गुजरती और शाहदरा तक पहुंचती। वहां तक पहुंचने के बाद उसका गाना खत्म हो जाता। आगे बढ़कर न जाने कहां चली जाती।’

यह बड़ी कनीज़ थी। अज़ीमाबाद की तवायफ़, मशहूर गायिका। जोहरा बाई की टक्कर की गायिका बड़ी कनीज़ अपने ज़माने की अज़ीम हस्ती थी। महफ़िलों में उसकी मांग जोहरा से ज्यादा थी। क्योंकि बड़ी कनीज़ बहुत हसीन थी। अपनी कला और अपने सौंदर्य की...

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