Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Bazar Mein Khada Darshanik’, by Gyanranjan and Kamla Prasad

A study of Walter Benjamin’s theories.

Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Bazar Mein Khada Darshanik’, by Gyanranjan and Kamla Prasad

Join our WhatsApp Community to receive travel deals, free stays, and special offers!
- Join Now -

Join our WhatsApp Community to receive travel deals, free stays, and special offers!
- Join Now -

ज्ञानरंजन, कमला प्रसादके किताब बाज़ार में खड़ा दार्शनिक का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

वाल्टर बेंजामिन जानते थे कि पूँजीवादी संस्कृति का सबसे रोचक खेल आधुनिक महानगरों में खेला जा रहा है। उन्होंने कहा कि, “कोई चेहरा इतना अतियथार्थवादी नहीं है, जितना कि एक शहर का चेहरा"। उन्होंने देखा कि यहाँ इच्छाओं और लालसाओं की एक भयावह मरीचिका रची गयी है। महानगरों में परीकथाओं के भयानक विरोधाभास हैं। चमक और रंगीनी के साथ-साथ शोषण, अन्याय, अजनबीपन और अमानवीयकरण के सबसे जटिल रूप यहाँ के दैनंदिन जीवन में व्याप्त हैं। बेंजामिन शहरों में ख़ाली हाथ भटकते एक रूमानी आवारा थे। शहर उन्हें चुम्बक की तरह खींचते थे। बर्लिन, मर्सेल्स, बर्गेन, मास्को, नेपल्स, पेरिस सभी महानगरों में उन्होंने उत्कट सौन्दर्य और पाशविकता के अद्भुत मेल को एक साथ रेखांकित किया। 1927 से 1933 के बीच उन्होंने शहरों के बारे में बर्लिन रेडियो पर लगभग 84 वार्ताएँ प्रसारित कीं। आधुनिक शहर, उनका शिल्प, इमारतें, भीड़, बाज़ार, सड़कों पर दिखता जीवन, नागरिक दिनचर्याएँ, मुक्ति और तनाव, ज़रूरतें और लाचारियाँ बेंजामिन के लेखन में एक शहरनामा रचती हैं। वे छोटे-छोटे नागरिक अनुभवों के तफ़सीलों में अपने विचार-बिम्ब खड़े करते हैं।

बेंजामिन के लिए शहरी जटिलता आधुनिकता का सारतत्त्व है। वे समय और स्थान में हो रहे परिवर्तनों को...

Read more