Hindi fiction: An excerpt from ‘Hashimpura 22 May’, by Vibhuti Narayan Rai
A novel about the Hashimpura massacre, during which 75 Muslim men were killed by the police on May 22, 1987.
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विभूति नारायण रायके उपन्यास हाशिमपुरा 22 मई का एक अंश, राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
मुझे शुरू से यह प्रश्न मथता रहा है कि क्योंकर हुआ होगा हाशिमपुरा? यदि आप मानसिक रूप से विक्षिप्त नहीं हैं, तो कैसे किसी जीवित व्यक्ति के सीने पर बन्दूक रखकर उसका घोड़ा दबा सकते हैं? मनुष्य की हत्या करने के लिए सबसे ज़रूरी शर्त है कि आपके पास इसके लिए कोई बहुत मजबूत कारण हो। मरने वाले ने आपके साथ कुछ ऐसा किया हो कि आप ग़ुस्से से बलबला रहे हों अथवा उसकी हत्या करने से आपको कोई बड़ा आर्थिक या आत्मिक तोष मिलने वाला हो, तभी आप उसे मारेंगे। हाशिमपुरा में तो प्रथम-दृष्ट्या ऐसा कुछ भी नहीं था। जिन्हें मारा गया था और जिन्होंने मारा था वे एक-दूसरे से पहली बार मिल रहे थे, उनकी आपस में कोई दोस्ती-दुश्मनी नहीं थी और न ही हत्यारों को अपने कृत्य के बाद कोई इनाम मिलने की ही सम्भावना थी। 22/23 मई की उस अँधेरी रात से, जब मैं मकनपुर में हिंडन नहर के किनारे मृतकों में जीवन के चिह्न तलाश रहा था और लाशों के बीच पहला जीवित बाबूदीन मिला था, मुझे यही सवाल परेशान करता रहा है। कैसे मार पाए होंगे सब इंस्पेक्टर सुरेन्द्र पाल सिंह और उसकी टुकड़ी...