Translated Hindi fiction: An excerpt from ‘Kaalam’, by MT Vasudevan Nair

The novel has been translated from the Malayalam into Hindi by NP Kuttanpillai.

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डॉ. एन. पी. कुट्टनपिल्लै मलयालम से अनुवादित एम टी वासुदेवन नायर के किताब कालम् का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

गीली मिट्टी से भरी पगडंडी और बड़ा बरगद का वृक्ष। बरगद के तले नारियल के मुलायम पत्ते, छोटे-छोटे डंठल तथा नारियल के छिलके पड़े हुए थे। पहले संध्या काल में अकेले मंदिर से लौटते समय बरगद के नीचे से न जाने के विचार से सिपाही के घर के आँगन से होकर भाग जाता था। जादू-टोटके के बाद दोष इसी बरगद के तले निकाल रख दिया जाता था। घर बड़ा था।

नारियल के पेड़ों से भरी उस ज़मीन पर फैले हुए उस मकान पर बड़ा गर्व था। सीखचों वाले बरामदे की ओर आँगन के आम्रवृक्ष की शाखाएँ पहुँचती थीं।

लेकिन वह उस घर में मेहमान था।

सुनसान आँगन को पार कर ड्योढ़ी की ओर बढ़ते समय किसी को पूछते सुना, “कौन आ रहा है?”

धूप में सूखे कपड़ों को उठाये ड्योढ़ी की ओर आती स्त्री के लिए रास्ता छोड़ खड़ा रहा।

“सेतु हो न? हे भगवान्! सेतु को मैं पहचान नहीं सकी।”

नलिनी दीदी थी।

श्वेत किनारी वाली धोती पहने खड़ी नलिनी दीदी बिलकुल दुबली हो गयी थी।

छोटी बुआ भी बरामदे पर आई। पिताजी की बहनों को देख बड़ा आनंद आया। सवेरे-सवेरे राजगृह के बाँध में स्नान करके चंदन लगाकर नया परिधान पहने उन स्त्रियों को देखने में भव्यता...

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