Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Hindu Ekta Banaam Gyan Ki Rajneeti’, by Abhay Kumar Dubey
A book about the how the Hindu religious identity has shaped Indian politics.
Join our WhatsApp Community to receive travel deals, free stays, and special offers!
- Join Now -
Join our WhatsApp Community to receive travel deals, free stays, and special offers!
- Join Now -
अभय कुमार दुबे के किताब हिन्दू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
बहुसंख्यकवाद का बढ़ता हुआ बोलबाला : मध्यमार्गी विमर्श दावा करता है कि भारत जैसे बहुलतापरक समाज में लोकतांत्रिक प्रतियोगिता की प्रकृति बहुसंख्यकवादी रुझानों को हतोत्साहित करती है, तो उसके पास अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए नब्बे के दशक तक के आँकड़े होते हैं। लेकिन नयी सदी के आँकड़े इस दावेदारी के उलट यह दिखाते हैं कि अब चुनावी प्रतियोगिता एक ऐसे माहौल में हो रही है जहाँ आम वोटर की समझ में लोकतंत्र और बहुसंख्यकवाद एक-दूसरे के पर्याय बनते जा रहे हैं ।
नयी सदी के पहले दशक में (2004 का लोकसभा चुनाव ) जिस समय कांग्रेस ने गठजोड़ राजनीति की प्रतियोगिता में भाजपा को पराजित करके सत्ता हासिल की, तो आम समझ यह बनी कि यह सेकुलरवाद की जीत है। भाजपा की इण्डिया शाइनिंग मुहिम की विफलता को साम्प्रदायिक राजनीति की विफलता माना गया। लेकिन, सुहास पल्शीकर ने अपने गहन सर्वेक्षण-आधारित आँकड़ागत विश्लेषण से न केवल इस धारणा को चुनौती दी, बल्कि भारतीय राजनीति में बहुसंख्यकवादी आग्रहों के पुष्ट होते जाने की प्रक्रिया की शिनाख़्त की। पल्शीकर ने जिन अहम बिंदुओं पर रोशनी डाली वे इस प्रकार हैं :
1. 2004 में भाजपा चुनाव अवश्य हार गयी लेकिन अंदेशा...