Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Gyan Ka Gyan’, by Hridaynarayan Dikshit

The origins of knowledge and its many forms in Indian classical texts.

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हृदयनारायण दीक्षित के किताब ज्ञान का ज्ञान का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

संसार व स्वयं का बोध ज्ञान है। संसार प्रत्यक्ष है। इसे समझने के लिए मनुष्य में आँख, कान, नाक, स्पर्श व स्वाद के उपकरण हैं। इसी तरह स्वयं को जानने के लिए अपने मन विवेचन का विज्ञान है, प्राण का अध्ययन भी स्वयं बोध का मार्ग है। इसके भी भीतर आनन्द का क्षेत्र है। स्व-भाव की जानकारी से स्वयं का ज्ञान सम्भव है लेकिन स्वभाव हमारा बाहरी व्यवहार नहीं है। हम प्रायः दूसरों के व्यवहार पर टिप्पणी करते हैं और उनके स्वभाव को गलत या सही बताते हैं| स्वभाव निजी आन्तरिक भाव है, उसकी जानकारी स्वयं को ही होती है। व्यवहार बाह्य आचरण है। हमें दूसरों का व्यवहार ही दिखाई पड़ता है। स्वभाव नहीं। स्वयं के स्वभाव का अध्ययन ही भारत में अध्यात्म है। उपनिषदों में परम अनुभूति या ब्रह्म को ‘ज्ञान स्वरूप' बताया गया है। उसे सत्य और परम ज्ञान कहा गया है। लेकिन ज्ञान का ज्ञान पाने का कोई सरल उपाय नहीं है। ज्ञान पदार्थ नहीं है। शब्द उसके रूप हैं। लेकिन शब्द ही ज्ञान नहीं है। ज्ञान हमारे अन्तस् का बोध है। इस बोध का रूपायन असम्भव है। इसलिए ज्ञान का ज्ञान पाना कठिन साधना है।

सृष्टि बड़ी है। जानने...

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