Hindi nonfiction: An excerpt from ‘Bazar Ke Beech, Bazar Ke Khilaph’, by Prabha Khaitan

A study of women’s labour in the marketplace.

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इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि स्त्री श्रमिक, जो श्रम के सोपानीकरण में भी सबसे निचले पायदान पर खड़ी है, की स्थिति पर अलग से सोचने-विचारने का समय किसी के पास नहीं है । इस स्थिति से निजात पाने के लिए सरकार को तो नया दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था। गैर-सरकारी संस्थाओं की भी महती भूमिका है। यदि वे चाहें तो सीधे पश्चिमी देशों में सक्रिय गैर-सरकारी संगठनों से संवाद स्थापित कर सकते हैं। और इस बहाने स्त्री श्रम की समस्याओं पर प्रकाश डालना संभव होगा। जिस कमीज की सिलाई करने में एक श्रमिक को १५ रुपये मिलते हैं, उसे एक अमेरिकी स्त्री १०० डॉलर यानी लगभग पाँच हजार रुपये में खरीदती है । पाँच हजार रुपये में कमीज खरीदने वाली स्त्री यदि चाहे तो इस स्त्री के हक में लड़ाई लड़ सकती है लेकिन क्या वह ऐसा करना चाहेगी? तकनीक किसी भी हालत में निष्पक्ष नहीं। मानवीय सरोकारों से तकनीक स्वतंत्र भी नहीं, तकनीक के साथ सामाजिक विशेषताएँ जुड़ी होती हैं जो इस तकनीक को स्थापित और विस्थापित करती हैं। स्त्री वर्ग को भी यह समझना होगा कि परिवर्तन से होने वाले विरोधाभासी परिणामों का सामना कैसे किया जाए?

नब्बे के दशक में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए गए। नये तकनीक से रोजगार...

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