Hindi fiction: An excerpt from ‘Raat Ka Reporter’, by Nirmal Verma

This was one of the first Hindi-language novels about the Emergency,

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निर्मल वर्मा के उपन्यास रात का रिपोर्टर का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

गलियारे में सफ़ेद रोशनी थी। हर कमरे के आगे एक हरी बेंच लगी थी, दीवार से जुड़ी हुई। चिकें आधी ऊपर उठी थीं, इसलिए बाहर की धूप आधी कटी हुई शहतीरों की तरह फ़र्श पर लेटी थी। जब जमादार फ़र्श पर पोंछा लगाने आया तो माँ ने अपनी टाँगें बेंच पर समेट लीं और एक पोटली की तरह सिकुड़कर बैठ गईं। फ़ोन बूथ के शीशे से उसे दो पोटलियाँ दिखाई दे रही थीं – एक माँ, एक फलों की टोकरी, जो वह अपने साथ लाई थीं।

कमरे से एक ठिगनी, काली नर्स बाहर निकली और माँ की बेंच के सामने खड़ी हो गई। वह उनसे कुछ कह रही थी। माँ ने सिर्फ़ सिर हिलाया और गलियारे के दोनों ओर देखा – वे शायद मुझे खोज रही थीं। लेकिन मैं यहाँ हूँ, फ़ोन बूथ के भीतर, जो इन दिनों मेरा आधा घर बन गया था। मैं घर के सारे फ़ोन बाहर से करता था... लायब्रेरी से, अस्पताल से, पब्लिक-कॉल बूथ से, ताकि कोई मेरी आवाज़ का पीछा न कर सके। मैं बूथ के शीशे से माँ को देख रहा था, वैसे ही, जैसे कुछ दिन पहले पहिया चलाती लड़की को देखा था!

फ़ोन बिलकुल गूँगा...

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