Hindi fiction: An excerpt from ‘Mrityu Aur Hansi’, by Pradeep Awasthi
A love story that is also a tale of the modern, urban life.
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प्रदीप अवस्थी के उपन्यास मृत्यु और हँसी का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
हमें नहीं पता रहता कि हमारे सबसे क़रीबी अपने मन में कितने राज़ दबाए रहते हैं। वे दो लोग जो रोज़ रात एक ही बिस्तर पर सोते हैं, किसी दिन अपने-अपने मन की सारी बातें एक-दूसरे से कह डालें, तो पता नहीं फिर कभी वे एक बिस्तर पर साथ बैठने के बारे में सोच भी पाएँगे या नहीं। हमें नहीं पता कौन से राज़, किस तरह खुलेंगे और क्या तबाही लेकर आएँगे। तबाही सिर्फ़ उन दो लोगों की ज़िन्दगी में नहीं, उनसे जुड़े लोगों की ज़िन्दगी में भी। और अगर वे बच्चे हों, तो जिस यातना से वे गुजरेंगे, उसकी छाप जीवन-भर उनके साथ रहेगी। तबाहियाँ ऐसी, जिनमें पिछली पीढ़ी का भी हाथ था। कोई एक-दो लोग नहीं होते, जो पिसते हैं। जब वे इन परिस्थितियों में होते हैं, तो ईर्ष्या, ग़ुस्से और बदले की भावना का ऐसा ज्वर रहता है कि लगता है बस कुछ भी करके मन को सुकून मिले। सब गुज़र जाने के बाद यदि कुछ बचता है, तो पछतावा और उसके भी बाद, ख़ालीपन।
बच्चे जब छोटे होते हैं तो छुट्टी की घंटी बजते ही ख़ुशी से शोर मचाते हुए, दौड़ते हुए बाहर तक आते हैं और...