Hindi fiction: An excerpt from ‘Vaishalinama: Loktrantra Ki Janamkatha’, by Prabhat Pranit

Not just Gautama Buddha’s kingdom, Vaishali was also the city where democracy originated.

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प्रभात प्रणीत के उपन्यास वैशालीनामा का एक अंश, राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

विशाल नदी के पास उसकी कलकल ध्वनि सुनते हुए एक कुटिया में धरती पर बिछे बिछावन पर सुप्रभा और नाभाग दाम्पत्य जीवन की पहली रात बिता रहे थे। दोनों एक दूसरे को निहारते हुए उन तमाम प्रश्नों, सम्भावनाओं को टटोल रहे थे जिसके सम्बन्ध में उन्हें अब तक बात करने का मौका ही नहीं मिल पाया था। हिमवंत आश्रम में इन्होंने अपने भविष्य की जिन भी सम्भावनाओं की कल्पना की थी इस समय वे उससे बिलकुल अलग स्थिति में थे। प्रश्न कोई करता उत्तर दोनों ही ढूँढ़ते, उत्तर कोई देता, पूछा गया प्रश्न दोनों के जेहन में होता। वह इस वार्तालाप के माध्यम से वस्तुत: संग जिये जानेवाले जीवन के मार्ग को तलाश रहे थे जिस पर अब तक के जीवन की परछाई दूर तक पहुँच रही थी—

“देवी सुप्रभा, मुझे क्षमा करना, मैं आपका अपने जीवन में उस तरह का स्वागत नहीं कर पाया जिस तरह की अपेक्षा आपने मुझसे की होगी।”

“यह कहकर मुझे अपनी दृष्टि में लघुता का अनुभव मत कराइये युवराज, आज मेरे कारण आपको इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है, आज मेरे कारण ही आप इस स्थिति में हैं, जिस राज्य के आप सम्राट होनेवाले थे उसी राज्य की...

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