Hindi fiction: An excerpt from ‘Keertigaan’ by Chandan Pandey

The novel follows Sunanda and Sanoj as they document the murders of Muslims, Dalits and Christians across India.

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चन्दन पांडेय की उपन्यास कीर्तीगान का एक अंश, राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

अभी जो हम सब अपनी मेहनत के परिणाम की तरह देख-सुन रहे हैं उसे सुनते हुए सरायकेला-खरसावाँ यात्रा में ऐसे वक़्त की याद आ रही है जिस वक़्त में जबर बादल छाए हुए हैं। उन बादलों की आवाज़ में गिर पड़ने की धमकी है। मैं दो-दो स्त्रियों को सामने देखकर ख़ुद पर और ख़ुद की कल्पनाओं पर काबू पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा हूँ। सुनंदा और लुकमान की बीवी। लेकिन अपनी हरकत से बादलों ने मेरा ध्यान खींच लिया है और फिर मैं लुकमान के जर्जर घर को देख रहा हूँ।

खपरैल और फूस का बना छज्जा है। छज्जे की हालत ऐसी कि बरसात के पानी को शायद ही घर से बाहर की ओर गिरने देता हो। दीवारों के लिए मिट्टी कम पड़ गई होगी कि उन्हें सीमेंट से नहीं, वह इन्हें कहाँ मिलना, सीमेंट के बोरों और काली पॉलिथीन के टुकड़ों की चिप्पी लगाकर बचाए रखने का क़ायदा अपनाया गया होगा। दीवारें इतनी पतली और बेचैन लग रही हैं जैसे कोई विपत्ति हों और हम पर टूट पड़ना चाहती हों। यहाँ की आबादी इन दीवारों के बीच चैन भी कैसे पाती होगी? इस घर को देखकर मुझे शाइस्ता का घर...

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