दुआ भी हो सकती है आपके सपने सच न होने की 'बद्दुआ'..
मोटिवेशनल स्पीकर और योगी सद्गुरु जेवी का कहना है कि 'मेरा यह आशीर्वाद है, आपके सपने सच न हों, क्योंकि आपकी उम्मीदें जीवन की एक सीमित समझ से पैदा होती हैं। मेरी कामना है कि आप अपने सपनों से परे जीवन जिएं।' इस विचार का गहरा अर्थ है वह यह है कि व्यक्ति को जीवन का मकसद समझना चाहिए और वाह्य जगत की जगह अंतर्जगत की ओर देखना चाहिए। उसके जीवन के बाहरे लक्ष्य पूरे होते रहेंगे और वह वाह्य में फंसा रहेगा तो अंदर झांकने का उसे मौका ही नहीं मिलेगा। ऐसे होगा दुखों का अंतः सद्गुरु कहते हैं कि एक बार आपने अपने और अपने शरीर के बीच, अपने और अपने मन के बीच दूरी बना ली तो यही दुखों का अंत है। जब आप इन बटोरी हुई दो चीजों यानी आपके शरीर और आपके मन और अपने बीच थोड़ी सी दूरी बना लेते हैं तो दुख नाम की कोई चीज नहीं रह जाती है। योग का उद्देश्य ध्यानमय होना है जिसका मतलब बस इतना है कि आपने जागरूक होकर दुखों के स्त्रोत से अपनी दूरी बना ली है। जब दुख झेलने का कोई डर नहीं रह जाता केवल तब जब दुखी होने का कोई डर नहीं रह जाता है। आप अपना कदम बढ़ाएंगे और एक इंसान होने की पूरी संभावना तक पहुंचेंगें। एक इंसान होना बस जीवित बने रहने के बारे में नहीं है, इंसान होना अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओॆ से परे जाकर सबसे गहराई में उतर कर उसके मूल के बारे में जानने के बारे में है।ये भी पढ़ेंः स्वामी अवधेशानंद गिरी के ये मंत्र जीवन को बना देंगे आसान, इन्हें आपको भी अपनाना चाहिए दूसरे जैसा बनने की कोशिश न करेंः सद्गुरु कहते हैं हर इंसान में विशेष प्रतिभा होती है, लेकिन वह दूसरों जैसा बनने में उसको नष्ट कर देता है। इंसान को अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखना चाहिए।


मोटिवेशनल स्पीकर और योगी सद्गुरु जेवी का कहना है कि 'मेरा यह आशीर्वाद है, आपके सपने सच न हों, क्योंकि आपकी उम्मीदें जीवन की एक सीमित समझ से पैदा होती हैं। मेरी कामना है कि आप अपने सपनों से परे जीवन जिएं।' इस विचार का गहरा अर्थ है वह यह है कि व्यक्ति को जीवन का मकसद समझना चाहिए और वाह्य जगत की जगह अंतर्जगत की ओर देखना चाहिए। उसके जीवन के बाहरे लक्ष्य पूरे होते रहेंगे और वह वाह्य में फंसा रहेगा तो अंदर झांकने का उसे मौका ही नहीं मिलेगा।
ऐसे होगा दुखों का अंतः सद्गुरु कहते हैं कि एक बार आपने अपने और अपने शरीर के बीच, अपने और अपने मन के बीच दूरी बना ली तो यही दुखों का अंत है। जब आप इन बटोरी हुई दो चीजों यानी आपके शरीर और आपके मन और अपने बीच थोड़ी सी दूरी बना लेते हैं तो दुख नाम की कोई चीज नहीं रह जाती है।
योग का उद्देश्य ध्यानमय होना है जिसका मतलब बस इतना है कि आपने जागरूक होकर दुखों के स्त्रोत से अपनी दूरी बना ली है। जब दुख झेलने का कोई डर नहीं रह जाता केवल तब जब दुखी होने का कोई डर नहीं रह जाता है। आप अपना कदम बढ़ाएंगे और एक इंसान होने की पूरी संभावना तक पहुंचेंगें। एक इंसान होना बस जीवित बने रहने के बारे में नहीं है, इंसान होना अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओॆ से परे जाकर सबसे गहराई में उतर कर उसके मूल के बारे में जानने के बारे में है।
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दूसरे जैसा बनने की कोशिश न करेंः सद्गुरु कहते हैं हर इंसान में विशेष प्रतिभा होती है, लेकिन वह दूसरों जैसा बनने में उसको नष्ट कर देता है। इंसान को अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखना चाहिए।